नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का स्तर पिछले कई दिनों से खतरनाक लेवल के ऊपर बना हुआ है। हालांकि यह किसी एक साल की कहानी नहीं है। बढ़ते प्रदूषण का असर यहां रहने वाले लोगों के हेल्थ पर भी पड़ रहा है। पहले तो बुजुर्ग लोगों के लिए ही सावधानी और कई जरूरी उपाय करने की बात कही जाती थी लेकिन अब यह अधिक उम्र की बात नहीं रही। दूषित हवा न सांसों पर भारी है बल्कि इससे फेफड़ों का रंग तक बदल रहा है। कहने का मतलब है कि हाल के दिनों में कई ऐसे केस सामने आए हैं जहां सामान्य व्यक्ति का फेफड़ा भी स्मोक करने वालों की तरह काला हो गया है। इसको लेकर ने भी ऐसे मामलों पर हैरानी जताई है। कुछ समय पहले एक न्यूज वेबसाइट से बातचीत में डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि उन्होंने जब 1988 में करियर की शुरुआत की थी तो उनके अधिकांश मरीज 60 या उससे अधिक उम्र के थे। आज लेकिन ऐसी स्थिति नहीं है। उनका कहना है कि वह 30 वर्ष के आस-पास के उम्र के लोगों में भी फेफड़ों का कैंसर देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब गुलाबी फेफड़ा देखना दुर्लभ बात है। जो मरीज उनके पास आते हैं उनमें से अधिकांश का फेफड़ा काला होता है। डॉ. अरविंद कुमार ने कहा कि भले ही आप बीड़ी या सिगरेट का सेवन नहीं करते हैं लेकिन फेफड़े धूम्रपान करने वालों के जैसे हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि 1988 के वक्त जो मरीज आते थे जिनके फेफड़ों में ब्लैक स्पॉट होता था उसमें दस में से 9 मरीज स्मोक करने वाले होते थे। एक केवल नॉन स्मोकर होता था। उन्होंन वर्तमान समय के और अपने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि अब ऐसे जो मरीज आ रहे हैं उसमें रेश्यो 1:1 का है। इसका मतलब एक स्मोकर और दूसरा नॉन स्मोकर। पिछले कुछ सालों में दिल्ली में प्रदूषण काफी बढ़ा है। डॉ. अरविंद कुमार ने एक उदाहरण देते हुए बताया कि उनके पास लंग कैंसर के मरीज पहले 60 साल के अधिक के आते थे। 20 या 25 साल की उम्र में उन्होंने धूम्रपान शुरू किया जिसका असर आगे दिखाई दिया। अब जो बच्चा दिल्ली में पैदा हो रहा है वह पैदा होने के दिन से ही वायु प्रदूषण के वो कण ले रहा जैसा सिगरेट पीने से होता है। इसी का नतीजा है कि अब कम उम्र के नॉन स्मोकिंग वाले मरीज सामने आ रहे हैं। कई बार प्रूदषण का लेवल और पीएम कण इतना बढ़ा होता है जो दिन के 20 से 25 सिगरेट पीने के बराबर होता है।
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